वाराणसी । अगर किसी को महाभारत का मर्म समझना है, तो वह  या कल वाराणसी चला आए। धर्म और शास्त्रत्त् की यह प्राचीन नगरी इस समय सियासी महासमर की धुरी बन गई है। गुरुवार को देश के गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर और कपड़ा मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी यहां के चुनावी रण में दहाड़ रहे थे। उधर, समाजवादी पार्टी ने भी समूचा जोर लगा रखा था। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, अपने दोनों चाचा रामगोपाल और शिवपाल यादव के साथ मंच साझा कर रहे थे। यही नहीं ममता बनर्जी, जयंत चौधरी, ओमप्रकाश राजभर आदि तमाम संगी उनके साथ मतदाताओं से रू-ब-रू थे। बसपा प्रमुख मायावती ने भी मंडलीय रैली की। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दो दिवसीय प्रवास पर यहां शुक्रवार को पहुंचेंगे। उन्होंने गुरुवार को पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली और जौनपुर में सभाएं कीं। उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान तीन दिन काशी में डेरा डाला था। वो भी मार्च का महीना था। तब से अब तक गंगा में बहुत जल बह चुका है। मोदी की अगुवाई में भाजपा सफलतापूर्वक 2014, 2017 और 2019 में जाति की जंजीरें तोड़ चुकी है। क्या यह कमाल एकबार फिर दोहराया जाने वाला है? मोदी का जादू काशी में सिर पर चढ़कर बोलता है। शहर के तमाम हिस्सों में घूमते हुए मुझे महिलाओं, छात्रों और विभिन्न वर्गों के पुरुषों से मिलने का मौका मिला। उनमें से कइयों ने स्थानीय विधायकों के प्रति गहरी नाराजगी जताई। उत्तर प्रदेश काबीना के एक मंत्री के खिलाफ तो लोग बेहद रोष में हैं। वे यहीं से विधायक हैं और उनके क्षेत्र के लोगों का मानना है कि उन्होंने उनके भरोसे का सम्मान नहीं रखा। उनके सामने समाजवादी पार्टी ने एक युवा महंत को खड़ा किया है। यदि महंत को सपा के परंपरागत वोट बैंक के अलावा 20-25 फीसदी ब्राह्मणों के मत मिल गए, तो भाजपा को हार का सामना करना पड़ सकता है’- संघ और भाजपा के समर्थक एक व्यक्ति ने मुझे बताया। मेरा उनसे दूसरा सवाल था कि आप किसे वोट देंगे? जवाब चौंकाने वाला था- ‘हम अपने विधायक से नाराज हैं पर हम उन्हें नहीं मोदी और योगी को वोट देंगे।’ रोष, आक्रोश और अपनेपन की खिचड़ी का नाम ही बनारस है।